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भवेय् ? सुभतिराह-एवमेिद्भगवन, एवमेिि सुगि। बहवमिे ऱोकिािवो भवेय्। भगवानाह-यावन्ि् सुभि िेष ऱोकिािुष सत्त्वा्, िेषामहॊ नानाभावाॊ तचत्तिाराॊ प्रजानातम। ित्कमय हेिो् ? तचत्तिारा तचत्तिारेति सुभि अिारैषा िथागिेन भात्रषिा, िेनोच्यिे तचत्तिारेति। ित्कमय हेिो् ? अिीिॊ सुभि तचत्तॊ नोपऱभ्यिे। अनागिॊ तचत्तॊ नोपऱभ्यिे। प्रत्युत्पन्नॊ तचत्तॊ नोपऱभ्यिे॥१८॥ िस्त्क मन्यसे सुभि य् कस्श्चत्कऱपुिो वा कऱिदहिा वा इमॊ त्रिसाहस्रमहासाहस्रॊ ऱोकिािु सप्तरत्नपररपूि कत्वा िथागिेभ्योऽहयद्भय् सम्यक्सॊबद्धभ्यो िानॊ ियाि, अत्रप नु स कऱपुिो वा कऱिदहिा वा ििोतनिानॊ बह पुण्यमकन्िॊ प्रसुनयाि ? सुभतिराह- बह भगवन, बह सुगि। भगवानाह-एवमेित्सुभि, एवमेिि। बह स कऱपुिो वा कऱिदहिा वा ििोतनिानॊ पुण्यमकन्िॊ |
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