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楼主: 轮值法官

[进行中] 【第一天】This is my road(星矢皮下换人)

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发表于 2015-8-7 15:07 | 显示全部楼层
रूपकायपररतनष्प्पत्रत्तररति भगवन अपररतनष्प्पत्रत्तरेषा िथागिेन भात्रषिा। िेनोच्यिे रूपकायपररतनष्प्पत्रत्तररति॥    भगवानाह- िस्त्क मन्यसे सुभि ऱऺिसॊपिा िथागिो द्रष्टव्य् ? सुभतिराह-नो हीिॊ भगवान। न ऱऺिसॊपिा िथागिो द्रष्टव्य्। ित्कमय हेिो् ? यैषा भगवन ऱऺिसॊपत्तथागिेन भात्रषिा, अऱऺिसॊपिेषा िथागिेन भात्रषिा। िेनोच्यिे ऱऺिसॊपदिति॥२०॥
发表于 2015-8-7 15:08 | 显示全部楼层
沙加这种灌水方式令人发指
达拿都斯 发表于 2015-8-7 15:06
meiri yinjing zheshi bixu de
发表于 2015-8-7 15:08 | 显示全部楼层
今天给医生准备的是苹果玫瑰茶❀
阿布罗狄 发表于 2015-8-7 15:07

多谢啦
补字
发表于 2015-8-7 15:08 | 显示全部楼层
今天爷家的大蝎子没出现,实在有点担心
笛捷尔 发表于 2015-8-7 15:06

上午到中午都是在的,医生你又忙得错过了❀
发表于 2015-8-7 15:08 | 显示全部楼层
भगवानाह- िस्त्क मन्यसे सुभि अत्रप नु िथागिमयैव भवति-मया िमो िेतशि इति ? सुभतिराह-नो हीिॊ भगवन िथागिमयैव भवति-मया िमो िेतशि इति। भगवानाह-य् सुभि एवॊ विेि- िथागिेन िमो िेतशि इति, स त्रविथॊ विेि। अभ्याचऺीि माॊ स सुभि असिोद्गहीिेन। ित्कमय हेिो् ? िमयिशना िमयिशनेति सुभि नास्मि स कस्श्चद्धमो यो िमयिशना नामोपऱभ्यिे॥    एवमुक्त आयुष्प्मान सुभतिभयगवन्िमेििवोचि-अस्मि भगवन क तचत्सत्त्वा भत्रवष्प्यन्त्यनागिेऽर्ध्वतन पस्श्चमे काऱे पस्श्चमे समये पस्श्चमायाॊ पञ्चशत्याॊ सद्धमयत्रवप्रऱोपे वियमाने, य इमानेवरूपान िमायन श्रुत्वा अतभश्रद्धामयस्न्ि। भगवानाह- न िे सुभि सत्त्वा नासत्त्वा्। ित्कमय हेिो् ? सत्त्वा् सत्त्वा इति सुभि सवे िे सुभि असत्त्वामिथागिेन भात्रषिा्। िेनोच्यन्िे सत्त्वा इति॥२१॥    िस्त्क मन्यसे सुभि-अत्रप नु अस्मि स कस्श्चद्धमय्, यमिथागिेनानुत्तराॊ  सम्यक्सॊबोतिमतभसॊबद्ध् ? आयुष्प्मान सुभतिराह-नो हीिॊ भगवन। नास्मि स भगवन कस्श्चद्धमो यमिथागिेनानुत्तराॊ सम्यक्सॊबोतिमतभसॊबद्ध्। भगवानाह-एवमेित्सुभि, एवमेिि। अिुरत्रप िि िमो न सॊत्रवयिे नोपऱभ्यिे। िेनोच्यिे अनुत्तरा सम्यक्सॊबोतिररति॥२२॥    अत्रप िु खऱु पुन् सुभि सम् स िमो न िि कस्श्चदद्वषम्। िेनोच्यिे अनुत्तरा सम्यक्सॊबोतिररति। तनरात्मत्वेन तन्सत्त्वत्वेन तनजॉवत्वेन तनष्प्पुद्गऱत्वेन समा सा अनुत्तरा सम्यक्सॊबोति् सवै् कशऱैिमरतभसॊबर्ध्यिे। ित्कमय हेिो् ? कशऱा िमाय् कशऱा िमाय इति सुभि
发表于 2015-8-7 15:09 | 显示全部楼层
上午到中午都是在的,医生你又忙得错过了❀
阿布罗狄 发表于 2015-8-7 15:08

啥?他什么时候出现过
发表于 2015-8-7 15:09 | 显示全部楼层
अिमायश्चव िे िथागिेन भात्रषिा्। िेनोच्यन्िे कशऱा िमाय इति॥२३॥    यश्च खऱु पुन् सुभि स्त्री वा पुरुषो वा यावन्िस्स्त्रसाहस्रमहासाहस्रे ऱोकिािौ सुमरव्
发表于 2015-8-7 15:09 | 显示全部楼层
पवयिराजान्, िाविो राशीन सप्तानाॊ रत्नानामतभसॊरृत्य िथागिेभ्योऽहयद्भय् सम्यक्सॊबद्धभ्यो िानॊ ियाि, यश्च कऱपुिो वा कऱिदहिा वा इि् प्रऻापारतमिाया िमयपयाययािन्िशश्चिुष्प्पादिकामत्रप गाथामुद्गह्य परेभ्यो िेशयेि, अमय सुभि पुण्यमकन्िमय असौ पौवयक् पुण्यमकन्ि् शििमीमत्रप कऱाॊ नोपैति, याविपतनषिमत्रप न ऺमिे॥२४॥    िस्त्क मन्यसे सुभि-अत्रप नु िथागिमयैव भवति-मया सत्त्वा् पररमोतचिा इति? न खऱु पुन् सुभि एवॊ द्रष्टव्यम। ित्कमय हेिो् ? नास्मि सुभि कस्श्चत्सत्त्वो यमिथागिेन पररमोतचि्। यदि पुन् सुभि
发表于 2015-8-7 15:09 | 显示全部楼层
कस्श्चत्सत्त्वोऽभत्रवष्प्ययमिथागिेन पररमोतचि् मयाि, स एव  िथागिमयात्मग्राहोऽभत्रवष्प्यि, सत्त्वग्राहो जीवग्राह् पुद्गऱग्राहोऽभत्रवष्प्यि। आत्मग्राह इति सुभि अग्राह एष िथागिेन भात्रषि्। स च बाऱपृथवजनैरुद्गहीि्। बाऱपृथवजना इति सुभि अजना एव िे िथागिेन भात्रषिा्। िेनोच्यन्िे बाऱपृथवजना इति॥२५॥    िस्त्क मन्यसे सुभि-ऱऺिसॊपिा िथागिो द्रष्टव्य् ? सुभतिराह-नो हीिॊ भगवन। यथाहॊ भगविो भात्रषिमयाथयमाजानातम, न ऱऺिसॊपिा िथागिो द्रष्टव्य्। भगवानाह-सािु सािु सुभि, एवमेित्सुभि, एवमेियथा वितस। न ऱऺिसॊपिा िथागिो द्रष्टव्य्। ित्कमय हेिो् ? सचेत्पुन् सुभि ऱऺिसॊपिा िथागिो द्रष्टव्योऽभत्रवष्प्यि, राजात्रप चक्रविॉ िथागिोऽभत्रवष्प्यि। िममान्न ऱऺिसॊपिा िथागिो द्रष्टव्य्। आयुष्प्मान सुभतिभयगवन्िमेििवोचि-यथाहॊ भगविो भात्रषिमयाथयमाजानातम, न ऱऺिसॊपिा िथागिो द्रष्टव्य्॥    अथ खऱु भगवाॊमिमयाॊ वेऱायातममे गाथे अभाषि- ये माॊ रूपेि चाद्राऺुय माॊ घोषेि चान्वगु्। तमथ्याप्रहािप्रसृिा न माॊ द्रक्ष्यस्न्ि िे जना्॥१॥
发表于 2015-8-7 15:10 | 显示全部楼层
िमयिो बुद्धो द्रष्टव्यो िमयकाया दह नायका्।  िमयिा च न त्रवऻेया न सा शक्या त्रवजातनिुम॥२॥२६॥   िस्त्क मन्यसे सुभि ऱऺिसॊपिा िथागिेन अनुत्तरा सम्यक्सॊबोतिरतभसॊबद्धा ? न खऱु पुनमिे सुभि एवॊ द्रष्टव्यम। ित्कमय हेिो् ? न दह सुभि ऱऺिसॊपिा िथागिेन अनुत्तरा सम्यक्सॊबोतिरतभसॊबद्धा मयाि। न खऱु पुनमिे सुभि कस्श्चिेव विेि-बोतिसत्त्वयानसॊप्रस्मथिै् कमयतचद्धमयमय त्रवनाश् प्रऻप्त् उच्छेिो वेति। न खऱु पुनमिे सुभि एवॊ द्रष्टव्यम। ित्कमय हेिो् ? न बोतिसत्त्वयानसॊप्रस्मथिै् कमयतचद्धमयमय त्रवनाश् प्रऻप्तो नोच्छेि्॥२७॥    यश्च खऱु पुन् सुभि कऱपुिो वा कऱिदहिा वा गङ्गानिीवाऱुकासमाॉल्ऱोकिािून सप्तरत्नपररपूि कत्वा िथागिेभ्योऽहयद्भय्
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